जालौन : ऐतिहासिक कर्णदेवी मंदिर पर जवारों के साथ जुटी भक्तों की अपार भीड़

जालौन : ऐतिहासिक कर्णदेवी मंदिर पर जवारों के साथ जुटी भक्तों की अपार भीड़  कर्णदेवी की आराधना से होती है दीर्घायु धन-धान्य व यश की प्राप्ति  रिपोर्ट :- विजय द्विवेदी  जगम्मनपुर, जालौन : जनपद के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में एक कर्णदेवी मंदिर पर नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुट रही है ।  जनपद जालौन के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कर्ण देवी मंदिर पर मां के जयकारों की गूंज के साथ हजारों भक्तों की भीड़ जुट रही है। इस अवसर पर औरैया, इटावा, जालौन, भिंड, कानपुर देहात आदि जनपदों के हजारों श्रद्धालु माता कर्ण देवी के दर्शन के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। जनपद जालौन की उत्तरी सीमा पर जगम्मनपुर के समीप यमुना नदी के तट पर विशाल कनार राज्य के प्राचीन दुर्ग के खंडहरों पर मौजूद कर्ण देवी का मंदिर अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास का साक्षी है।   राज परिवार की पूजित देवी का इतिहास इक्कीस सौ वर्ष पूर्व तक का ज्ञात है लेकिन इससे पूर्व किस समय से यह देवी मूर्ति यहां स्थापित है कहीं पर अभिलेख नहीं मिले है । किवदंती है कि आज से लगभग इक्कीस सौ वर्ष पूर्व उज्जैन के प्रसिद्ध महाराजा विक्रमादित्य अमृत की खोज में कनार राज्य तक आए थे। उस समय कनार राज्य पर महाराजा सिंहदेव का शासन था उनके द्वारा प्रतिदिन सवा मन अर्थात 50 किलो स्वर्ण दान करने के कारण उनकी तुलना महाभारत के दानवीर कर्ण से की जाती थी एवं उन्हें कलयुग का कर्ण भी कहा जाता था । महाराज सिंहदेव अपने राज्य की प्रजा का धर्म पूर्वक पालन करते थे। कनार राज्य की सीमा के बारे में प्रमाण मिले हैं की यह वर्तमान के इटावा से बांदा तक फैला हुआ था। महाराजा सिंहदेव (कर्ण) को सवा मन सोना कनार दुर्ग में बने मंदिर में स्थापित कर्णदेवी से प्राप्त होने की बात कही जाती है जिसके लिए प्रतिदिन महाराजा सिंहदेव (कर्ण) स्वयं को देवी के समक्ष भोग के रूप में प्रस्तुत करते थे। देवी उनके तले हुए मांस का भोग लगाकर प्रतिदिन राजा को अमृत से जीवित करके सवा मन सोना प्रदान कर देती थी। उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने कनार राज्य के महाराजा सिंहदेव (कर्णदेव) से छिपकर देवी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न कर अमृत प्राप्त करके उन्हें (कर्णदेवी को) अपने साथ चलने को तैयार कर लिया , जब राजा कर्णदेव को अपने साथ हुए छल का पता चला तो वह देवी मां के पैर पकड़कर रोने लगे और चरणों का सेवक होने का वास्ता दिया तो देवी ने मां ने दोनों भक्त राजाओं के मान की रक्षा करते हुए स्वयं को दो भागों में विभक्त कर लिया , उसी समय से देवी मां के चरण कनार मे कर्णदेवी के रूप में और कमर के ऊपर का भाग उज्जैन में प्रसिद्ध हरसिद्धि माता के रूप में पूजा जा रहा है। हरसिद्धि माता की इस मूर्ति के दर्शन गर्भगृह में ही हो सकते हैं वाह्य दर्शन में दूसरी मूर्ति पूजित है। उसी काल से यहां मां के चरणों की पूजा होती है । बाबर से युद्ध के बाद किला खंडहर होने के बावजूद कर्ण देवी मां के प्रभाव में कोई कमी नहीं आई । प्रतिवर्ष यहां मां के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन वर्ष की चारों नवरात्रि में यहां साधक एवं भक्तों की भीड़ रहती है । वर्तमान आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष भी कर्ण देवी मंदिर पर प्रतिदिन हजारों भक्तों का तांता लगा हुआ है । बैंड बाजा ढोलक मजीरा की ध्वनि एवं देवी गीतों को गाते हुए भक्तों की टोलियां एवं महिलाएं मां कर्ण देवी के दर्शन कर मान मनौतियां कर रहे हैं। मान्यता है कि अमृत के प्रभाव से यहां पर पूजा आराधना करने वालों को दीर्घायु एवं राजा सिंहदेव (कर्ण) को दान करने के लिए प्रतिदिन सवा मन स्वर्ण प्रदान करने वाली कर्णदेवी अपने भक्तों को धन-धान्य से संपन्न कर उनके जीवन को खुशियों से भर देती है।

जालौन : ऐतिहासिक कर्णदेवी मंदिर पर जवारों के साथ जुटी भक्तों की अपार भीड़  कर्णदेवी की आराधना से होती है दीर्घायु धन-धान्य व यश की प्राप्ति  रिपोर्ट :- विजय द्विवेदी  जगम्मनपुर, जालौन : जनपद के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में एक कर्णदेवी मंदिर पर नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुट रही है ।  जनपद जालौन के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कर्ण देवी मंदिर पर मां के जयकारों की गूंज के साथ हजारों भक्तों की भीड़ जुट रही है। इस अवसर पर औरैया, इटावा, जालौन, भिंड, कानपुर देहात आदि जनपदों के हजारों श्रद्धालु माता कर्ण देवी के दर्शन के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। जनपद जालौन की उत्तरी सीमा पर जगम्मनपुर के समीप यमुना नदी के तट पर विशाल कनार राज्य के प्राचीन दुर्ग के खंडहरों पर मौजूद कर्ण देवी का मंदिर अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास का साक्षी है।   राज परिवार की पूजित देवी का इतिहास इक्कीस सौ वर्ष पूर्व तक का ज्ञात है लेकिन इससे पूर्व किस समय से यह देवी मूर्ति यहां स्थापित है कहीं पर अभिलेख नहीं मिले है । किवदंती है कि आज से लगभग इक्कीस सौ वर्ष पूर्व उज्जैन के प्रसिद्ध महाराजा विक्रमादित्य अमृत की खोज में कनार राज्य तक आए थे। उस समय कनार राज्य पर महाराजा सिंहदेव का शासन था उनके द्वारा प्रतिदिन सवा मन अर्थात 50 किलो स्वर्ण दान करने के कारण उनकी तुलना महाभारत के दानवीर कर्ण से की जाती थी एवं उन्हें कलयुग का कर्ण भी कहा जाता था । महाराज सिंहदेव अपने राज्य की प्रजा का धर्म पूर्वक पालन करते थे। कनार राज्य की सीमा के बारे में प्रमाण मिले हैं की यह वर्तमान के इटावा से बांदा तक फैला हुआ था। महाराजा सिंहदेव (कर्ण) को सवा मन सोना कनार दुर्ग में बने मंदिर में स्थापित कर्णदेवी से प्राप्त होने की बात कही जाती है जिसके लिए प्रतिदिन महाराजा सिंहदेव (कर्ण) स्वयं को देवी के समक्ष भोग के रूप में प्रस्तुत करते थे। देवी उनके तले हुए मांस का भोग लगाकर प्रतिदिन राजा को अमृत से जीवित करके सवा मन सोना प्रदान कर देती थी। उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने कनार राज्य के महाराजा सिंहदेव (कर्णदेव) से छिपकर देवी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न कर अमृत प्राप्त करके उन्हें (कर्णदेवी को) अपने साथ चलने को तैयार कर लिया , जब राजा कर्णदेव को अपने साथ हुए छल का पता चला तो वह देवी मां के पैर पकड़कर रोने लगे और चरणों का सेवक होने का वास्ता दिया तो देवी ने मां ने दोनों भक्त राजाओं के मान की रक्षा करते हुए स्वयं को दो भागों में विभक्त कर लिया , उसी समय से देवी मां के चरण कनार मे कर्णदेवी के रूप में और कमर के ऊपर का भाग उज्जैन में प्रसिद्ध हरसिद्धि माता के रूप में पूजा जा रहा है। हरसिद्धि माता की इस मूर्ति के दर्शन गर्भगृह में ही हो सकते हैं वाह्य दर्शन में दूसरी मूर्ति पूजित है। उसी काल से यहां मां के चरणों की पूजा होती है । बाबर से युद्ध के बाद किला खंडहर होने के बावजूद कर्ण देवी मां के प्रभाव में कोई कमी नहीं आई । प्रतिवर्ष यहां मां के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन वर्ष की चारों नवरात्रि में यहां साधक एवं भक्तों की भीड़ रहती है । वर्तमान आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष भी कर्ण देवी मंदिर पर प्रतिदिन हजारों भक्तों का तांता लगा हुआ है । बैंड बाजा ढोलक मजीरा की ध्वनि एवं देवी गीतों को गाते हुए भक्तों की टोलियां एवं महिलाएं मां कर्ण देवी के दर्शन कर मान मनौतियां कर रहे हैं। मान्यता है कि अमृत के प्रभाव से यहां पर पूजा आराधना करने वालों को दीर्घायु एवं राजा सिंहदेव (कर्ण) को दान करने के लिए प्रतिदिन सवा मन स्वर्ण प्रदान करने वाली कर्णदेवी अपने भक्तों को धन-धान्य से संपन्न कर उनके जीवन को खुशियों से भर देती है।

जालौन : ऐतिहासिक कर्णदेवी मंदिर पर जवारों के साथ जुटी भक्तों की अपार भीड़

कर्णदेवी की आराधना से होती है दीर्घायु धन-धान्य व यश की प्राप्ति

रिपोर्ट :- विजय द्विवेदी

जगम्मनपुर, जालौन : जनपद के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में एक कर्णदेवी मंदिर पर नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुट रही है ।

जनपद जालौन के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कर्ण देवी मंदिर पर मां के जयकारों की गूंज के साथ हजारों भक्तों की भीड़ जुट रही है। इस अवसर पर औरैया, इटावा, जालौन, भिंड, कानपुर देहात आदि जनपदों के हजारों श्रद्धालु माता कर्ण देवी के दर्शन के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। जनपद जालौन की उत्तरी सीमा पर जगम्मनपुर के समीप यमुना नदी के तट पर विशाल कनार राज्य के प्राचीन दुर्ग के खंडहरों पर मौजूद कर्ण देवी का मंदिर अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास का साक्षी है।   राज परिवार की पूजित देवी का इतिहास इक्कीस सौ वर्ष पूर्व तक का ज्ञात है लेकिन इससे पूर्व किस समय से यह देवी मूर्ति यहां स्थापित है कहीं पर अभिलेख नहीं मिले है । किवदंती है कि आज से लगभग इक्कीस सौ वर्ष पूर्व उज्जैन के प्रसिद्ध महाराजा विक्रमादित्य अमृत की खोज में कनार राज्य तक आए थे। उस समय कनार राज्य पर महाराजा सिंहदेव का शासन था उनके द्वारा प्रतिदिन सवा मन अर्थात 50 किलो स्वर्ण दान करने के कारण उनकी तुलना महाभारत के दानवीर कर्ण से की जाती थी एवं उन्हें कलयुग का कर्ण भी कहा जाता था । महाराज सिंहदेव अपने राज्य की प्रजा का धर्म पूर्वक पालन करते थे। कनार राज्य की सीमा के बारे में प्रमाण मिले हैं की यह वर्तमान के इटावा से बांदा तक फैला हुआ था। महाराजा सिंहदेव (कर्ण) को सवा मन सोना कनार दुर्ग में बने मंदिर में स्थापित कर्णदेवी से प्राप्त होने की बात कही जाती है जिसके लिए प्रतिदिन महाराजा सिंहदेव (कर्ण) स्वयं को देवी के समक्ष भोग के रूप में प्रस्तुत करते थे। देवी उनके तले हुए मांस का भोग लगाकर प्रतिदिन राजा को अमृत से जीवित करके सवा मन सोना प्रदान कर देती थी। उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने कनार राज्य के महाराजा सिंहदेव (कर्णदेव) से छिपकर देवी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न कर अमृत प्राप्त करके उन्हें (कर्णदेवी को) अपने साथ चलने को तैयार कर लिया , जब राजा कर्णदेव को अपने साथ हुए छल का पता चला तो वह देवी मां के पैर पकड़कर रोने लगे और चरणों का सेवक होने का वास्ता दिया तो देवी ने मां ने दोनों भक्त राजाओं के मान की रक्षा करते हुए स्वयं को दो भागों में विभक्त कर लिया , उसी समय से देवी मां के चरण कनार मे कर्णदेवी के रूप में और कमर के ऊपर का भाग उज्जैन में प्रसिद्ध हरसिद्धि माता के रूप में पूजा जा रहा है। हरसिद्धि माता की इस मूर्ति के दर्शन गर्भगृह में ही हो सकते हैं वाह्य दर्शन में दूसरी मूर्ति पूजित है। उसी काल से यहां मां के चरणों की पूजा होती है । बाबर से युद्ध के बाद किला खंडहर होने के बावजूद कर्ण देवी मां के प्रभाव में कोई कमी नहीं आई । प्रतिवर्ष यहां मां के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन वर्ष की चारों नवरात्रि में यहां साधक एवं भक्तों की भीड़ रहती है । वर्तमान आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष भी कर्ण देवी मंदिर पर प्रतिदिन हजारों भक्तों का तांता लगा हुआ है । बैंड बाजा ढोलक मजीरा की ध्वनि एवं देवी गीतों को गाते हुए भक्तों की टोलियां एवं महिलाएं मां कर्ण देवी के दर्शन कर मान मनौतियां कर रहे हैं। मान्यता है कि अमृत के प्रभाव से यहां पर पूजा आराधना करने वालों को दीर्घायु एवं राजा सिंहदेव (कर्ण) को दान करने के लिए प्रतिदिन सवा मन स्वर्ण प्रदान करने वाली कर्णदेवी अपने भक्तों को धन-धान्य से संपन्न कर उनके जीवन को खुशियों से भर देती है।

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Journalist Anil Prabhakar

Editor UPVIRAL24 NEWS